Donate For Country: कांग्रेस आम लोगों से पैसे क्यों मांग रही है?

 

अपने 138वें स्थापना दिवस से 10 दिन पहले कांग्रेस पार्टी ने आज क्राउड फंडिग की शुरुआत की. पार्टी के खजाने में मुख्यत: रकम जुटाने के मकसद से शुरू किये गए इस अभियान का नाम ‘डोनेट फॉर देश’ रखा गया है. पार्टी का कहना है कि जो लोग भी एक बेहतर भारत बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं और उन्हें लगता है कि कांग्रेस पार्टी में वह माद्दा है, वह आगे आ आर्थिक मदद के सहारे भी देश की सबसे पुरानी पार्टी का हाथ थामें. चूंकि इस महीने के आखिर में पार्टी अपना 138वां स्थापना दिवस नागपुर में मनाने जा रही है, वह अपने कार्यकर्ताओं, नेताओं और सहानुभूति रखने वाले समर्थकों से 138 अंक को केंद्र में रख दान देने की अपील कर रही है. इसे आप यूं समझें कि 138, 1380, 13800 जैसे डोनेशन्स पर पार्टी का बड़ा जोर है.

भारतीय जनता पार्टी यह कह इस मुहिम का माखौल उड़ा रही है कि यह ‘डोनेट फॉर देश’ नहीं बल्कि ‘डोनेट फॉर डायनेस्टी’ है. तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में जीत से गदगद बीजेपी इस अभियान को वंशवाद की फंडिंग कह रही है. भाजपा का कहना है कि गांधी परिवार की जो खर्चीली जीवनशैली है, उसके लिए कांग्रेस को लोगों से पैसा मांगना पड़ रहा है. हालांकि दलगत राजनीति को जानने समझने वालों का कहना है कि कांग्रेस पार्टी अगर इस मुहिम को साफ मन से बरते तो वह न सिर्फ नए लोगों को अपने साथ जोड़ सकेगी बल्कि आम लोगों से चंदा लेकर राजनीति करने की पुरानी परंपरा को भी किसी न किसी रूप में जिलाए रख पाएगी लेकिन शर्त यह है कि प्रयास ईमानदार हो, बस दिखावे के लिए राजनीतिक शुचिता के ढोल न पीटे जाएं.

आम लोगों की राजनीति का वादा

आज जब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे इस अभियान की शुरुआत कर रहे थे तो उन्होंने एक बड़ी महीन बात कही जो इस अभियान के पीछे पार्टी की सोच को बयां करता है. खड़गे साहब ने पहले तो कहा कि कांग्रेस पार्टी एक ऐप बना कर पहली बार इस तरह का कोई प्रयास कर रही है. लेकिन इसके बाद उन्होंने कहा कि पार्टी का मकसद है कि वह आम लोगों के सहयोग से छोटी-छोटी रकम जोड़ देश बनाए क्योंकि सिर्फ अमीरों के ऊपर भरोसा कर के अगर हम काम करते जाएंगे तो कल को उनके कार्यक्रम और नीतियों को भी हमें मानना पड़ेगा. जाहिर सी बात है ऐसा कहते हुए देश की सबसे पुरानी पार्टी लोगों की आर्थिक मदद से लोगों को केंद्र में रख नीति बनाने वाली राजनीति करने का भरोसा दे रही है. लोगों को इस पर ऐतबार होगा या नहीं, वक्त बताएगा.

लेकिन लोगों से पैसे मांगने के पीछे कांग्रेस की सिर्फ यही कुछ एक वजहें नहीं, पार्टी जब इस दिशा में बढ़ रही है तो उसके सामने कुछ दूसरी कड़वी सच्चाइयां भी हैं. दरअसल देश में आम चुनाव में अब चार महीने से भी कम का समय रह गया है और पार्टी जानती है कि चुनाव लड़ने के लिए उसे बड़े पैमाने पर संसाधन की जरुरत होगी. वहीं पार्टी के रिजर्व फंड और हाल के बरसों में मिले चुनावी दान की अगर बात करें तो वह अपनी प्रतिद्वंदी बीजेपी से कई कदम पीछे खड़ी नजर आती है. वहीं दूसरी तरफ आंकड़े बताते हैं कि भारत में चुनाव दिन ब दिन काफी महंगे होते जा रहे हैं.

2019 चुनाव में खर्च: 60 हजार करोड़

चुनाव प्रचार और खर्च को लेकर पिछले दो दशक से काम करने वाली संस्था सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज (सीएमएस) की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2019 का आम चुनाव भारत का सबसे महंगा चुनाव रहा. सीएमएस की मानें तो 2019 के लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों ने कम से कम 50 हजार करोड़ रूपये से लेकर 60 हजार करोड़ रूपये के बीच पैसे खर्च किए. यह रकम 2016 के अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में खर्च होने वाले पैसे से भी कहीं ज्यादा थी. 11 अप्रैल से शुरू हो कर 19 मई तक चलने वाला 2019 का संसदीय चुनाव 2014 की तुलना में दोगुना खर्चीला था. रिपोर्ट तो यहां तक कहती है कि एक वोटर के ऊपर औसतन लगभग 700 रूपये खर्च हुए जबकि एक संसदीय सीट पर 100-100 करोड़ रूपये तक फूंक दिए गए. इस तरह भारत का चुनाव दुनिया के सबसे महंगे चुनावों में शुमार होता चला गया.

कांग्रेस से साढ़े 6 गुना ज्यादा चंदा भाजपा को

खैर अब आइये दूसरे पहलू पर किस राजनीतिक दल के पार्टी फंड में कितना पैसा है और चुनावी पार्दशिता का हवाला देकर लाए गए इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम से किस दल को कितना दान मिला. इलेक्टोरल बॉन्ड के मद से आने वाले डोनेशन से पहले ओवरऑल भाजपा और कांग्रेस को मिले चंदे को समझ लेते हैं. चुनाव सुधार को लेकर काम करने वाली संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी एडीआर के मुताबिक 2016-17 से लेकर 2021-22 के बीच बीजेपी को लगभग 10 हजार 122 करोड़ रूपये चंदे में मिला. वहीं कांग्रेस पार्टी को इन्हीं 6 बरसों में करीब 1 हजार 547 करोड़ डोनेशन मिले. तुलना अगर दोनों पार्टियों को मिले रकम की करें तो भारतीय जनता पार्टी को कांग्रेस से साढ़े 6 गुना अधिक चंदा इन बरसों में मिला.

भाजपा, कांग्रेस: किसके पास कितनी संपत्ति

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म की एक दूसरी रिपोर्ट कहती है कि 2021-22 में राष्ट्रीय पार्टियों के पास कुल 8 हजार 829 करोड़ की संपत्ति थी. इसमें से करीब 70 फीसदी यानी लगभग 6 हजार करोड़ रूपये की संपत्ति अकेले भारतीय जनता पार्टी की थी. वहीं कांग्रेस पार्टी संपत्ति के मामले में बीजेपी से कोसो दूर खड़ी दिखी. 2021-22 में कांग्रेस के पास लगभग 800 करोड़ रूपये की संपत्ति थी. पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले जहां भारतीय जनता पार्टी की संपत्ति में करीब 21 फीसदी का इजाफा दिखा तो कांग्रेस की संपत्ति तकरीबन साढ़े 16 फीसदी बढ़ी.

इलेक्टोरल बॉन्ड: 6 साल में किसे कितना मिला?

एडीआर के मुताबिक फाइनेंसियल ईयर 2016-17 से लेकर 2021-22 के बीच इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये कुल करीब 9 हजार 188 करोड़ रूपये का चंदा राजनीतिक दलों को मिला. ये चंदा 7 राष्ट्रीय पार्टी और 24 क्षेत्रीय दलों के हिस्से आया. दिलचस्प बात जो थी वो ये कि कुल रकम का करीब 57 प्रतिशत डोनेशन यानी आधे से भी अधिक पैसा भारतीय जनता पार्टी के पार्टी फंड में आया. 6 सालों में चुनावी बॉन्ड से बीजेपी को मिले 5 हजार 272 करोड़, वहीं कांग्रेस पार्टी को इसी दौरान 952 करोड़ रूपये हासिल हुए. जबकि बाकी के बचे लगभग 3 हजार करोड़ रूपये में 29 राजनीतिक दलों को मिलने वाला चंदा था.

सत्ताधारी दल को हमेशा ही रहा है बढ़त

हालांकि हमेशा से ही सत्ताधारी पार्टी को चुनावी चंदे और फंड में विपक्ष से बढ़त हासिल रहा है लेकिन फिलहाल ये अंतर कई गुना का दिखता है. एडीआर की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2004-05 में बीजेपी की कुल संपत्ति 123 करोड़ के करीब थी. वहीं इसी वित्त वर्ष में कांग्रेस की संपत्ति 167 करोड़ थी. यानी यूपीए के शासन की शुरुआत के समय दोनों दलों की संपत्ति में कुछ करोड़ का अंतर था न कि कई गुने का. 2014-15 में भी कांग्रेस पार्टी की संपत्ति बीजेपी से ज्यादा ही थी लेकिन फिर साल दर साल कांग्रेस पिछड़ती चली गई. 2021-22 आते-आते लगभग 6 हजार करोड़ रूपये की संपत्ति भारतीय जनता पार्टी की हो गई. वहीं कांग्रेस पार्टी लगभग 800 करोड़ रूपये की संपत्ति ही इन सालों में जुटा सकी. अब एक ओर सर पर चुनाव की चिंता और दूसरी ओर संसाधन की ये खाई, इस कशमकश में खड़ी कांग्रेस डोनेट फॉर देश मुहिम के तहत पार्टी की आर्थिक सेहत तंदरूस्त कर लेना चाहती है.

 

 

 

 

 

 

 

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