हल्द्वानी में पुलिस क्रूरता-हिंसा की सारी हदें पार कर रही! जमीयत उलेमा ए हिंद के मौलाना अरशद मदनी ने दिखाए तेवर

मुजफ्फरनगर: जमीयत उलेमा ए हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने हल्द्वानी पुलिस एक्शन की कड़े शब्दों में निंदा की है। जारी बयान में मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि हल्द्वानी में जो कुछ हुआ वह बहुत दुखद है। जमीयत का एक प्रतिनिधिमंडल प्रभावित क्षेत्रों का हाल जानने के लिए हल्द्वानी के दौरे पर गया था, उसने जो रिपोर्ट दी है वह बहुत दुखद है। उन्होंने कहा कि यह बात सामने आ गई है कि पुलिस प्रशासन की भूमिका बेहद खराब रही है। आरोप लगाया कि अब पुलिस क्रूरता और हिंसा की सारी हदें पार करते हुए लोगों को गिरफ्तार कर रही है। जबरन घरों में घुसकर पुरुषों और महिलाओं की पिटाई कर रही है। कोई भी न्यायपूर्ण समाज इसे बर्दाश्त नहीं कर सकता।

जारी बयान में मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि हल्द्वानी प्रकरण के संबंध में हमने उत्तराखंड के डीजीपी को पत्र लिखा है। हमने उत्तराखंड के डीजीपी से मांग की है कि वह इस मामले में ध्यान दें और पुलिस द्वारा निर्दोष नागरिकों पर किए जा रहे अत्याचार को रोके। गिरफ्तारियों के सिलसिले को भी तुरंत रोका जाना चाहिए और पूरे घटना की निष्पक्ष जांच हो। उन्होंने कहा कि पुलिस और प्रशासन ने अगर ईमानदारी से मामले को सुलझाने का प्रयास किया होता तो शायद इस घटना को रोका जा सकता था। पुलिस ने शक्ति प्रदर्शन को प्राथमिकता दी। इसके चलते स्थिति बिगड़ गई और पांच निर्दोष लोगों को अपनी जिंदगी से हाथ धोना पड़ा।

पुलिस-प्रशासन की नीयत पर सवाल

मौलाना मदनी ने कहा कि जब मामला न्यायालय में था तो प्रशासन को मस्जिद और मदरसे को ध्वस्त करने की इतनी जल्दी क्यों थी। उन्होंने कहा कि जानकारी के मुताबिक 8 फरवरी को हाईकोर्ट ने इस केस की सुनवाई के लिए 14 फरवरी की तारीख तय की थी। पुलिस प्रशासन ने 14 तारीख का इंतजार नहीं किया और 8 फरवरी की शाम को ही मस्जिद और मदरसे को ध्वस्त करने के लिए प्रशासनिक अमला वहां पर पहुंच गया। मौलाना ने कहा कि इससे यह दुखद वास्तविकता सामने आ गई कि प्रशासन की नीयत ठीक नहीं है।

ब्रिटिश शासन काल से लीज पर जमीन

मौलाना ने कहा कि हमें जो जानकारी मिली उसके मुताबिक यह भूमि 1937 में ब्रिटिश शासन काल में एक व्यक्ति को लीज पर दी गई थी। यहां मुसलमान आबाद हुए और मस्जिद और मदरसे का भी निर्माण किया गया। उन्होंने कहा कि अब यह दलील दी जा रही है कि स्थानीय लोग हिंसा पर उतारू थे और अपने घरों की छतों से पथराव कर रहे थे। नियंत्रण पाने के लिए पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी। यह भी बात भी फैलाई जा रही है कि पुलिस पर योजनाबद्ध तरीके से हमला किया गया। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की बातें अब मामले की लीपापोती करने और फायरिंग को उचित ठहराने के लिए की जा रही हैं। स्थानीय लोग तो प्रशासन के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे और यह कोई अपराध नहीं है। संविधान ने देश के हर नागरिक को विरोध प्रदर्शन का अधिकार दिया है। सवाल यह है कि बात यहां तक क्यों पहुंची।

अचानक बुलडोजर लेकर पहुंचे

जमीयत के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने जारी बयान में कहा कि प्रशासन की जिम्मेदारी थी कि वह ऐसी किसी भी कार्रवाई से पहले स्थानीय लोगों को वास्तविक स्थिति से अवगत कराकर विश्वास में लेता। अचानक से जब प्रशासन के बुलडोजर वहां पर पहुंचे तो लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया। लोगों को दबाने के लिए पुलिस प्रशासन ने लाठी चार्ज और फायरिंग की। उन्होंने कहा कि देश के इतिहास में यह पहली घटना नहीं है। हर जगह मुसलमानों के खिलाफ पुलिस कानून व्यवस्था स्थापित करने के बजाए एक पार्टी बन जाती है।

अल्पसंख्यक नहीं कर सकता प्रदर्शन

मौलाना ने आरोप लगाया कि प्रशासन के पास प्रदर्शन को देखने के दो मापदंड हैं। यदि मुस्लिम अल्पसंख्यक प्रदर्शन करे तो अक्षम्य अपराध है और बहुसंख्यक लोग प्रदर्शन करें, सड़कों पर उतरकर हिंसक कृत्य करें और पूरी-पूरी रेलगाड़ियां और स्टेशन फूंक डालें तो उन्हें रोकने को हल्का लाठीचार्ज भी नहीं किया जाता है। प्रशासन का धर्म के आधार पर भेदभाव दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा कि हाल ही में सेना में कॉन्ट्रैक्ट नौकरियों के खिलाफ होने वाला हिंसक प्रदर्शन इसका प्रमाण है।

प्रदर्शनकारियों ने जगह-जगह ट्रेनों में आग लगाई, सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया, पुलिस पर पथराव किया। पुलिस मूक दर्शक बनी रही, जो लोग गिरफ्तार किए गए थे, उनके खिलाफ हल्की धाराएं लगाई कि थाने से ही उनकी जमानत हो गई। इसके सैकड़ों उदाहरण प्रस्तुत किए जा सकते हैं। हम इसके खिलाफ लंबे समय से आवाज उठा रहे हैं, लेकिन दुर्भाग्य से हर मामले को धार्मिक ऐनक से देखा जाने लगा है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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