कनाडा : जस्टिन ट्रूडो को अगले साल चुनाव का सामना करना है लेकिन कनाडा के मौजूदा हालात उनके पक्ष में नहीं हैं. चुनावी सर्वेक्षणों से संकेत मिलता है कि ट्रूडो की लिबरल पार्टी विपक्षी कंजर्वेटिव पार्टी से काफी पीछे चल रही है. ऐसा माना जा रहा है कि अगर लिबरल पार्टी आगामी चुनाव में ट्रूडो के नेतृत्व में उतरती है तो हार का सामना करना पड़ सकता है.
महंगाई, हाउसिंग संकट और श्रम यूनियंस के साथ विवाद के चलते ट्रूडो सरकार का समर्थन घटता जा रहा है, वहीं कनाडा बॉर्डर से प्रवासियों के चलते अमेरिका-कनाडा के बीच तनाव भी सामने आया है, इसके चलते वाशिंगटन लगातार ओटावा पर इमीग्रेशन के फ्लो को सीमित करने के लिए दबाव डाल रहा है. ऐसे कई अनसुलझे मुद्दे हैं जो आगामी चुनाव में ट्रूडो को बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं.
लिहाजा माना जा रहा है कि इन घरेलू मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए ट्रूडो भारत विरोधी एजेंडे का इस्तेमाल कर रहे हैं, यही नहीं इससे वह चुनाव में खालिस्तान समर्थक दलों और वोट बैंक को लुभाकर एक बार फिर सत्ता हासिल करने का ख्वाब देख रहे हैं.
घरेलू मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश?
भारत-कनाडा के संबंधों में तनाव चरम पर है, दोनों देशों ने डिप्लोमैटिक संबंध कम कर लिए हैं. पिछले साल सितंबर में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत सरकार पर बेबुनियाद आरोप लगाया था जो विवाद का मुख्य कारण है. ट्रूडो बिना सबूत दिए बार-बार एक ही आरोप दोहरा रहे हैं, उनका कहना है कि भारत सरकार कनाडा की धरती पर खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में शामिल थी. हालांकि अब वह खुद कबूल कर चुके हैं कि उनके पास भारत के खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं है. लिहाजा सवाल उठने लगे हैं कि क्या कनाडा सरकार का रवैया वाकई किसी गंभीर मुद्दे को दिखाता है या फिर कहीं ये घरेलू विफलताओं से ध्यान भटकाने का प्रयास तो नहीं है?
वो मुद्दे जिन्हें लेकर घर में घिरे ट्रूडो
कनाडा में ट्रूडो सरकार अपनी नीतियों को लेकर घिर गई है, अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर खालिस्तानी आंदोलन और अलगाववादियों को खुली छूट, अवैध प्रवास के चलते बढ़ती आबादी और बुनियादी सुविधाओं की कमी के चलते उनकी लोकप्रियता बेहद कम हो चुकी है. कनाडा में 4 प्रमुख घरेलू मुद्दे जिन्हें 4Is के नाम से भी जाना जाता है वो हैं- इन्फ्लेशन (महंगाई), इनकम्बेंसी (सत्ता), इमीग्रेशन (अप्रवास), और आइडेंटिटी (पहचान).
कनाडा में महंगाई इस वक्त सबसे बड़ा मुद्दा है, कई ऐसे मौके सामने आए हैं जब कर्मचारियों ने सार्वजनिक तौर पर ट्रूडो को आसमान छूती महंगाई को लेकर घेरा है. आरोप है कि ट्रूडो सरकार आम जनता की परेशानियों और मुद्दों को अनसुना कर रही है, इसके अलावा करीब एक दशक तक सत्ता में बने रहने के कारण उनकी सरकार एंटी-इनकम्बेंसी यानी सत्ता विरोधी लहर का भी सामना कर रही है. जिससे ट्रूडो का राजनीतिक आधार और भी कम हो गया है
इमीग्रेशन: ताकत बनी कमजोरी
वहीं इमीग्रेशन यानी अप्रवास अमेरिका की तरह कनाडा में भी एक बहुत बड़ा मुद्दा बन चुका है. कनाडा जो कि विभिन्नता के लिए जाना जाता था, यही अब इसकी समस्या बन चुकी है. अप्रवासियों को शरण और नागरिकता देना लिबरल पार्टी की ताकत थी, इसे लेकर अब ट्रूडो सरकार घिरने लगी है. दरअसल बढ़ती आबादी ने कनाडा की सोशल सर्विस और हाउसिंग इनफ्रास्ट्रक्चर को प्रभावित करना शुरू कर दिया है. नतीजतन ट्रूडो सरकार को अप्रवासियों की संख्या को कम करने के लिए मजबूर होना पड़ा. हाल ही में ट्रूडो सरकार ने स्टूडेंट वीजा में कटौती का फैसला किया था, जिससे भारतीय छात्रों की भी चिंता बढ़ गई थी. इसके अलावा कनाडा बॉर्डर से घुसने वाले प्रवासी श्रमिकों को लेकर अमेरिका-कनाडा के बीच तनाव भी सामने आया है. इसे लेकर अमेरिका लगातार कनाडा पर दबाव डाल रहा है. जिससे अवैध प्रवास पर लगाम लगाई जा सके.
कनाडा में आइडेंटिटी क्राइसिस?
इन मुद्दों को और जटिल बनाने के लिए कनाडा में पहचान की राजनीति एक बड़ी चुनौती बन गई है. देश की विविधता अब सामाजिक विभाजन का कारण बन गई है. खालिस्तान आंदोलन चलाने वाले समूह के दबाव में कनाडा की विदेश नीति प्रभावित हो रही है जिससे भारत और कनाडा के बीच संबंध तनावपूर्ण हो गए हैं. अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर इन समूहों को कनाडा सरकार ने खुली छूट दी जो अब भारत के साथ संबंधों पर असर डाल रही है. कनाडा की मीडिया और कई राजनेता भारत के साथ विवाद को गलत कदम बता रहे हैं, माना जा रहा है कि ट्रूडो शायद जिसे ‘ट्रंप कार्ड’ की तरह इस्तेमाल करना चाह रहे थे वही अब उनके खिलाफ बड़े विरोध का कारण साबित हो रहा है.
चीन के दखल का मुद्दा भी अहम
ट्रूडो सरकार के कार्यकाल के सबसे बड़े अनसुलझे मुद्दों में से एक कनाडा के चुनावों में चीनी हस्तक्षेप से निपटना रहा है. चीन पर कनाडा के आंतरिक मामलों खासकर चुनाव में हस्तक्षेप और फंडिंग के जरिए दखल का आरोप लगता रहा है. पिछले कुछ सालों में चीन पर कनाडा के चुनाव को प्रभावित करने और चीन समर्थक उम्मीदवारों को पैसे भेजने का आरोप लगाने वाली कई रिपोर्टें सामने आई हैं. 2023 में कनाडा की खुफिया एजेंसी ने खुलासा किया था कि 2019 और 2021 के चुनाव में चीन ने कनाडा के चुनाव में दखलंदाजी की है. आरोप हैं कि चीन ने उन उम्मीदवारों के पक्ष में माहौल बनाने में मदद की जो बीजिंग को फायदा पहुंचाने वाली पॉलिसी के समर्थक हैं. इन आरोपों की जांच के लिए ट्रूडो ने फॉरेन इंटरफेयरेंस कमीशन (FIC) बनाया जिसका काम कनाडा की चुनावी प्रक्रिया में चीन की भूमिका की जांच करना था. अब तक इस मुद्दे पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई है. जिससे ट्रूडो सरकार आगामी चुनाव में एक बार फिर घिर सकती है.
लिहाजा माना जा रहा है कि भारत के खिलाफ बेबुनियाद आरोप लगाकर ट्रूडो अपनी सरकार की विफलताओं से लोगों का ध्यान हटाना चाह रहे हैं. वह चाहते तो डिप्लोमैटिक रास्तों से शांतिपूर्ण तरीके से मुद्दे को सुलझा सकते थे लेकिन ट्रूडो ने इस विवाद को सार्वजनिक तरीके से बढ़ाने का विकल्प चुना जो आने वाले समय में भारत और कनाडा के रिश्तों को और नुकसान पहुंचा सकता है.