अखिलेश और शिवपाल के करीबियों के बेटों को नौकरी, यूपी विधानसभा नियुक्ति घोटाले में सामने आए सारे नाम

अखिलेश और शिवपाल के करीबियों के बेटों को नौकरी, यूपी विधानसभा नियुक्ति घोटाले में सामने आए सारे नाम

लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा और विधान परिषद में खाली 186 पदों पर हुई भर्ती प्रक्रिया में गड़बड़ी का मामला गरमाने लगा है। प्रदेश के प्रशासनिक महकमे में इसे हाई कोर्ट की ओर से घोटाले का नाम दिए जाने के बाद चर्चा गहरा गई है। दरअसल, यूपी विधानसभा की 186 पदों पर हुई नियुक्ति में हर पांचवां कैंडिडेट के वीवीआईपी के रिश्तेदार होने का मामला सामने आया है। यह नियुक्तियां कम से कम 15 समीक्षा अधिकारियों (आरओ) के पदों से संबंधित हैं। इसके अलावा 27 सहायक आरओ और जूनियर पद पर भी नियुक्ति हुई है। आरओ एक राजपत्रित पद के बराबर है जिसका वेतन बैंड 47,600 से 1,51,100 रुपये है। एआरओ का वेतन मैट्रिक्स 44,900 से 1,42,400 रुपये है। इन नियुक्तियों पर उठे सवालों ने सरकार की नीति को भी सवालों के घेरे में ला दिया है। इंडियन एक्सप्रेस की ओर से इस संबंध में विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की गई है।

दो चरणों में निकली नियुक्ति

हाई कोर्ट के अभिलेखों में भर्ती को लेकर विवरण पेश किया गया है। इसके तहत उत्तर प्रदेश परिषद सचिवालय की ओर से 17 और 27 सितंबर 2020 को 99 पदों के लिए विज्ञापन दिया गया। 22 नवंबर 2020 को प्रारंभिक परीक्षा और स्थानीय विवाद के कारण 29 नवंबर को गोरखपुर के लिए दोबारा परीक्षा हुई। मुख्य परीक्षा 27 और 30 दिसंबर 2020 को आयोजित किया गया। इस परीक्षा का परिणाम 11 मार्च 2021 को आया है।

यूपी विधानसभा सचिवालय की ओर से दिसंबर 2020 में 87 पदों के लिए विज्ञापन दिया गया। 24 जनवरी 2021 को प्रारंभिक परीक्षा का आयोजन किया गया। 27 फरवरी 2021 को मुख्य परीक्षा और 14 मार्च 2021 को टाइपिंग टेस्ट का आयोजन किया गया। इस परीक्षा का परिणाम 26 मार्च 2021 को जारी किया गया। इन परीक्षाओं में करीब 2.5 लाख अभ्यर्थी शामिल हुए।

भर्ती एजेंसी पर उठा सवाल

अदालती रिकॉर्ड से पता चलता है कि विधानसभा भर्ती का ठेका ब्रॉडकास्टिंग इंजीनियरिंग एंड कंसल्टेंसी सर्विसेज (BECIL) को दिया गया था। यह केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तहत एक केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र का उद्यम है। बीईसीआईएल ने टीएसआर डेटा प्रोसेसिंग को काम पर रखा। बीईसीआईएल के वरिष्ठ प्रबंधक अविनाश खन्ना ने कहा कि हमने विधानसभा सचिवालय के साथ एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए और हमने इसे आगे बढ़ा दिया। हम इस समय और कुछ नहीं कह सकते, क्योंकि मामला न्यायालय में विचाराधीन है।

सूत्रों ने पुष्टि की कि परिषद ने राभव को अपनी भर्ती का काम सौंपा था। हालांकि, सचिवालय ने परीक्षा प्रक्रिया की गोपनीयता का हवाला देते हुए अदालत में फर्म का नाम नहीं बताया। विधानसभा सचिवालय के लिए चयनित लोगों की एक कथित सूची एक अन्य याचिकाकर्ता विपिन कुमार सिंह की ओर से हाई कोर्ट में प्रस्तुत की गई थी। विपिन एक असफल उम्मीदवार भी थे।

विपिन कुमार सिंह ने अपने सूत्रों से हासिल ओएमआर आंसर शीट और टाइपिंग शीटों का हवाला देते हुए आरोप लगाया कि योग्यता अंकों में हेराफेरी की गई थी। उन्होंने कोर्ट को बताया कि परिणाम कभी भी बड़े पैमाने पर जनता के लिए खुले तौर पर घोषित नहीं किए गए थे। न तो परिणामों की तारीख का खुलासा किया गया और न ही उम्मीदवारों की सूची।

विधानसभा सचिवालय ने हाईकोर्ट को बताया कि अंतिम परिणाम प्रतिवादियों की आधिकारिक वेबसाइट uplegiassemblyrecruitment.in पर अपलोड कर दिया गया। सहायक समीक्षा अधिकारी के पद के लिए अंतिम सूची विधानसभा सचिवालय कार्यालय के नोटिस बोर्ड पर चिपकाई गई।

जांच में आए मामले

इंडियन एक्सप्रेस की ओर से रिकॉर्ड की जांच की। उन लोगों का साक्षात्कार लिया। जो अधिकारियों और राजनेताओं से जुड़े दो सचिवालयों के लिए चुने गए 38 उम्मीदवारों का पता लगाने में शामिल थे। यूपी विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष एचएन दीक्षित के पीआरओ को विधान परिषद में एक नया पद विशेष कार्यकारी अधिकारी (प्रकाशन) बनाकर नियुक्ति किया गया। इस संबंध में एचएन दीक्षित ने कहा कि वह मेरे साथ थे और बाद में उन्हें परिषद (सचिवालय) में नियुक्त किया गया। इसमें मेरी कोई भूमिका नहीं थी।

पीआरओ के भाई का भी विधानसभा में समीक्षा अधिकारी (आरओ) के पद पर चयन हुआ। इस संबंध में एचएन दीक्षित ने कहा कि मैं इस व्यक्ति को नहीं जानता। उनकी देखरेख में हुई भर्ती के बारे में पूछे जाने पर पूर्व भाजपा विधायक और 2017-2022 तक विधानसभा अध्यक्ष रहे एचएन दीक्षित ने कहा कि यह हमारी ओर से अनुमोदित एक एजेंसी की ओर से आयोजित किया गया था। हालांकि, मेरी भूमिका सीमित थी और मामला अब अदालत में है। मेरे किसी भी करीबी रिश्तेदार को किसी भी पद पर नियुक्त नहीं किया गया है।

अधिकारियों के संबंधियों की नियुक्ति

यूपी संसदीय कार्य विभाग के प्रमुख सचिव जय प्रकाश सिंह के बेटे और बेटी को आरओ, विधानसभा पद पर नियुक्त किया गया। इस संबंध में जय प्रकाश सिंह ने कहा कि उनका चयन उनकी योग्यता के आधार पर हुआ है। मैं इससे ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहता। प्रमुख सचिव, विधानसभा प्रदीप दुबे के चार रिश्तेदारों की भी नियुक्ति हुई। उनके दो रिश्तेदार (चचेरे भाई के बेटे) आरओ एवं एआरओ, विधानसभा और दो अन्य रिश्तेदार (चचेरे भाई और मामा के बेटे) आरओ, परिषद में नियुक्त हुए। इस बारे में प्रदीप दुबे ने कहा कि यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है, मेरे लिए इस पर चर्चा करना उचित नहीं होगा।

विधान परिषद के प्रमुख सचिव डॉ. राजेश सिंह के बेटे को आरओ, विधानसभा पद पर नियुक्ति मिली। इस संबंध में राजेश सिंह का कहना है कि दुबे जी ने आपसे बात की है। मैं कुछ नहीं कहना चाहता। वहीं, पूर्व मंत्री महेंद्र सिंह के भतीजे को सहायक समीक्षा अधिकारी (एआरओ), विधान परिषद के पद पर नियुक्त किया गया। महेंद्र सिंह 2017 से 2019 तक राज्य मंत्री और 2019 से 2022 तक भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री थे। टिप्पणी के लिए उनसे संपर्क नहीं किया जा सका। उनके परिवार के एक सदस्य ने कहा कि उनका चयन प्रक्रिया से कोई लेना-देना नहीं है।

यूपी कानून विभाग पूर्व प्रमुख सचिव और उप लोकायुक्त रहे दिनेश कुमार सिंह के बेटे को आरओ, विधानसभा पद पर नियुक्त किया गया। बाद में बेटे को विकलांग व्यक्ति (पीडब्ल्यूडी) श्रेणी के तहत निचली अदालतों में न्यायाधीश के रूप में चुना गया। दिनेश कुमार सिंह ने इस संबंध में कहा कि उनकी नियुक्ति (विधानसभा सचिवालय में) में मेरी कोई भूमिका नहीं है। उन्होंने कहा कि वह अब न्यायिक अधिकारी हैं।

मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ के पूर्व ओएसडी अजय कुमार सिंह के बेटे को समीक्षा अधिकारी (आरओ), विधानसभा पद पर नियुक्त किया गया। इस संबंध में अजय कुमार सिंह ने टिप्पणी नहीं दी। विधान परिषद के अतिरिक्त निजी सचिव धर्मेंद्र सिंह के बेटे और भाई को विधानसभा एआरओ पद पर नियुक्ति दी गई। उन्होंने पूर्व मंत्री और सपा नेता शिवपाल यादव के साथ काम किया है। इस मामले में धर्मेंद्र सिंह ने कहा कि उन्होंने परीक्षा पास कर ली है।

पूर्व सीएम अखिलेश यादव के करीबी सहयोगी जैनेंद्र सिंह यादव उर्फ नीटू यादव के भतीजे को आरओ, विधानसभा पद पर नियुक्ति मिली। इस मामले में नीटू यादव ने टिप्पणी के अनुरोधों का जवाब नहीं दिया। चुने गए लोगों में दो भर्ती फर्मों के मालिकों के रिश्तेदार शामिल हैं। राभव के मालिक राम प्रवेश यादव की पत्नी को भी नियुक्ति मिली है। राम प्रवेश यादव के पिता शंभू सिंह यादव के भाई हैं, जो एक पूर्व आईएएस अधिकारी हैं, जो हाल ही में उप लोकायुक्त के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं।

राम प्रवेश की पत्नी को आरओ, परिषद पद पर नियुक्ति मिली है। शंभू सिंह यादव ने कहा कि मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता। टीएसआर डेटा प्रोसेसिंग के निदेशक रामबीर सिंह के भतीजे, भतीजी और बहनोई को एआरओ, विधानसभा पद पर नियुक्ति मिली है। टीएसआर डेटा प्रोसेसिंग के निदेशक सत्य पाल सिंह के भाई को एआरओ, विधानसभा पद पर नियुक्ति मिली है। रामबीर, सत्य पाल और राम प्रवेश यादव ने बार-बार अनुरोध का जवाब नहीं दिया।

हाई कोर्ट की कड़ी टिप्पणी

यूपी विधानसभा भर्ती के मामले में 2021 से इलाहाबाद हाई कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई थीं। 18 सितंबर 2023 को दो याचिकाओं को जोड़ते हुए मामले को जनहित याचिका में बदलने और सीबीआई जांच का आदेश दिया। दो न्यायाधीशों की पीठ ने बाहरी एजेंसियों को शामिल करने के तरीके की आलोचना की। हाई कोर्ट के रिकॉर्ड से पता चलता है कि दोनों निजी फर्मों के मालिकों को पहले भी एक अन्य भर्ती में कथित हेराफेरी के आरोप में जेल भेजा जा चुका है। मामला अभी भी लंबित होने के कारण वे जमानत पर हैं।

हाई कोर्ट ने नियमों में संशोधन का हवाला देते हुए तीखी टिप्पणी की। इससे यह घोटाला हुआ कि सचिवालयों के लिए भर्ती 2016 तक उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग कर ओर से की जाती थी। जब विधानसभा ने नियम में संशोधन किया। 2019 में परिषद की ओर से इसे स्वयं संचालित करने का निर्णय लिया। नियमों में संशोधन के समय परिषद के अध्यक्ष पूर्व सपा एमएलसी रमेश यादव ने स्वास्थ्य ठीक नहीं होने की बात कहकर टिप्पणी नहीं की।

हाई कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि यह देखकर आश्चर्य हुआ कि नियमों में संशोधन क्यों किया गया? परीक्षा एजेंसी को हटाकर, चयन समिति की ओर से निर्धारित नियम को दरकिनार करके बाहरी एजेंसी के लिए निर्णय, काफी चौंकाने वाला था। कोर्ट ने कहा कि बाहरी एजेंसियों की पहचान करने की प्रक्रिया पर संदेह हुआ।

कोर्ट ने कहा कि हमें कुछ ऐसे स्पष्ट विवरण मिले, जो प्रथम दृष्टया कोर्ट को वर्तमान मामले में बाहरी एजेंसी की पहचान के संबंध में एक निष्पक्ष एजेंसी की ओर से प्रारंभिक जांच के लिए संतुष्ट करते हैं। इसे सार्वजनिक सेवा में भर्ती का कार्य सौंपा गया है। कोर्ट ने कहा कि हमारी नजर में निष्पक्षता की कसौटी पर समझौता नहीं किया जा सकता है।

कोर्ट में हुई थी सुनवाई

3 अक्टूबर 2023 को हाई कोर्ट ने विधान परिषद की ओर से दायर एक समीक्षा आवेदन को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि इस न्यायालय ने मूल अभिलेखों का अवलोकन करके स्वयं ही लगाए गए आरोपों के सार पर अपनी प्रथम दृष्टया संतुष्टि दर्ज कर ली है और अब आगे जाने की आवश्यकता नहीं है। खासकर जब कोर्ट ने तथ्यों के पूरे दायरे से पाया है कि यह एक भर्ती घोटाले से कम नहीं है। इसमें सैकड़ों भर्तियों को अवैध रूप से और गैरकानूनी तरीके से एक बाहरी एजेंसी की ओर से भर्ती किया गया है, जिसकी विश्वसनीयता कम है।

इस बीच सीबीआई ने एक प्रारंभिक जांच (पीई) दर्ज की और भर्ती से संबंधित कुछ अभिलेखों को अपने कब्जे में ले लिया। सुप्रीम कोर्ट ने 13 अक्टूबर 2023 को स्थगन जारी नहीं कर दिया। सूत्रों का दावा है कि परिषद ने राभव को अपनी भर्ती का काम सौंपा था। हालांकि, सचिवालय ने परीक्षा प्रक्रिया की गोपनीयता का हवाला देते हुए अदालत में फर्म का नाम नहीं बताया।

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