नौतनवा, (लाल बहादुर जायसवाल): 16 दिसंबर को विजय दिवस के अवसर पर ठूठीबारी चौराहे पर पूर्व सैनिक सेवा समिति ने एक विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया। इस आयोजन में बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार, मंदिरों को तोड़े जाने और बहन-बेटियों के साथ दुर्व्यवहार की घटनाओं के खिलाफ आवाज उठाई गई। प्रदर्शन के दौरान बांग्लादेश का पुतला जलाया गया और “बांग्लादेश मुर्दाबाद” के नारों से क्षेत्र गूंज उठा।
1971 में भारत ने पाकिस्तान पर ऐतिहासिक विजय प्राप्त की थी, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का निर्माण हुआ। 16 दिसंबर को इस विजय की स्मृति में “विजय दिवस” मनाया जाता है। हालांकि, वर्तमान में बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे अत्याचारों और उनके धार्मिक स्थलों पर हमलों के विरोध में पूर्व सैनिकों ने इस दिवस को एक महत्वपूर्ण संदेश देने का माध्यम बनाया।
इस कार्यक्रम में कई सेवानिवृत्त सैनिकों और स्थानीय नागरिकों ने हिस्सा लिया। पूर्व सैनिक सेवा समिति के तत्वावधान में आयोजित इस प्रदर्शन में निम्नलिखित प्रमुख व्यक्तियों की उपस्थिति रही:
कैप्टन हरि बहादुर गुरूंग, हवलदार मनोज कुमार राना, हवलदार बिजय थापा, हवलदार मिट्ठू थापा, हवलदार बिनोद उपाध्याय, हवलदार केश बहादुर गुरूंग, हवलदार राज बहादुर गुरूंग, नायब सूबेदार रिखी राम थापा, सूबेदार आनंद थापा, हवलदार सुंदर शाही, हवलदार गुलाब प्रधान, हवलदार सागर गुरूंग, ओम प्रकाश वर्मा, अनिल क्षेत्री, रमेश सिंह, परमेश्वर यादव प्रदर्शन के दौरान सेवानिवृत्त सैनिकों ने बांग्लादेश सरकार से अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय की सुरक्षा सुनिश्चित करने और धार्मिक स्थलों पर हो रहे हमलों को रोकने की मांग की। साथ ही, उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय और भारत सरकार से इस मुद्दे पर हस्तक्षेप करने की अपील की।
विरोध प्रदर्शन के दौरान वक्ताओं ने कहा कि बांग्लादेश का निर्माण भारत के समर्थन और लाखों सैनिकों के बलिदान से हुआ था। इस भूमि पर धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे अत्याचार न केवल अमानवीय हैं, बल्कि इन घटनाओं से दोनों देशों के ऐतिहासिक संबंधों पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा होता है।
कार्यक्रम के समापन पर पूर्व सैनिक सेवा समिति ने अंतरराष्ट्रीय मंचों और मानवाधिकार संगठनों से अपील की कि वे बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर ध्यान दें। साथ ही, उन्होंने अपने संघर्ष को जारी रखने का संकल्प लेते हुए कहा कि यह लड़ाई न केवल अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए है, बल्कि वैश्विक शांति और न्याय के लिए भी है।