आजमगढ़ में मुलायम कुनबे ने डाला डेरा, धर्मेंद्र यादव को जिताने के लिए चाचा से लेकर भइया-भाभी और भतीजी तक जुटी

 

उत्तर प्रदेश का आजमगढ़ सामाजिक न्याय की पॉलिटिक्स का प्रयोगशाला कहा जाता है. बसपा के संस्थापक कांशीराम ने बहुजन सियासत की सियासी जमीन तैयार की, तो मुलायम सिंह यादव यहीं से मुस्लिम-यादव (एमवाई) समीकरण को अमली जामा पहनाने में कामयाब रहे. बसपा और सपा के दबदबे वाली आजमगढ़ सीट पर बीजेपी 13 साल के बाद 2022 के उपचुनाव में भगवा फहराने में कामयाब रही थी. बीजेपी ने एक बार फिर से दिनेश लाल यादव निरहुआ पर दांव खेला है, तो सपा ने भी धर्मेंद्र यादव पर भरोसा जताया है. बसपा से मशहूद अहमद मैदान में किस्मत आजमा रहे हैं. ऐसे में धर्मेंद्र यादव को जिताने के लिए उनके चाचा से लेकर भइया-भाभी और भतीजी तक जुटी हुई हैं.

आजमगढ़ लोकसभा सीट सपा की परंपरागत सीटों में एक रही है. मुलायम सिंह यादव से लेकर अखिलेश यादव तक इस सीट से सांसद रह चुके हैं. मोदी लहर होने के बावजूद 2014 और 2019 में बीजेपी यह सीट नहीं जीत सकी. सपा और मुलायम परिवार के लिए खास रही आजमगढ़ सीट से अखिलेश यादव के इस्तीफा देने के बाद हुए उपचुनाव में बीजेपी दिनेश लाल यादव निरहुआ के जरिए कमल खिलाने में कामयाब रही. धर्मेंद्र यादव का आजमगढ़ से हारना सपा और मुलायम परिवार के लिए बड़ा झटका था, जिसके चलते पार्टी ने काफी मंथन और विचार-विमर्श के बाद धर्मेंद्र यादव को फिर से प्रत्याशी बनाया है. इस बार धर्मेंद्र यादव की जीत के लिए सपा कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहती है.

मुलायम कुनबे ने आजमगढ़ में किया कैंप

आजमगढ़ के सियासी रण में मुलायम का पूरा कुनबा डेरा जमाए हुए है क्योंकि उपचुनाव वाली गलती सपा नहीं दोहराना चाहती है. धर्मेंद्र यादव को जिताने के लिए उनके चाचा शिवपाल यादव से लेकर प्रो. रामगोपाल यादव ने आजमगढ़ में एक सप्ताह से कैंप कर रखा है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव और डिंपल यादव ने आजमगढ़ में मंगलवार से ताबड़तोड़ रैलियां शुरू कर दी हैं. बुधवार को अखिलेश यादव आजमगढ़ के बिलरियागंज और सिधारी में जनसभा को संबोधित करेंगे. शिवपाल यादव से लेकर आदित्य यादव और अखिलेश यादव की बेटी अदिति यादव भी आजमगढ़ में चुनाव प्रचार करते नजर आ रहे हैं.

अखिलेश यादव विधानसभा स्तर पर बड़ी-बड़ी जनसभाएं करके धर्मेंद्र यादव के पक्ष में सियासी माहौल बनाने का काम कर रहे हैं, तो सपा महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव खामोशी के साथ गांव-गांव जाकर लोगों से भेंट कर प्रचार कर रहे हैं. शिवपाल यादव नुक्कड़ सभाएं कर रहे हैं, जबकि आदित्य यादव और अदिति यादव डोर-टू-डोर कैंपेन कर रहे हैं. आदित्य यादव की ससुराल आजमगढ़ है, तो शिवपाल की अपनी भी सियासी पकड़ है. आजमगढ़ सदर लोकसभा क्षेत्र के खरिहानी बाजार में जनसभा को संबोधित करते हुए डिंपल यादव पहली बार भोजपुरी में वोट मांगती हुई नजर आईं.

उपचुनाव वाली गलती नहीं दोहरा रही सपा

आजमगढ़ लोकसभा सीट पर 2022 में हुए उपचुनाव में अखिलेश यादव प्रचार करने नहीं गए थे. अखिलेश को उम्मीद थी कि उनके बिना प्रचार के धर्मेंद्र यादव जीतने में कामयाब रहेंगे, लेकिन आजमगढ़ में उनका उतरना सपा के लिए महंगा पड़ा था. आजमगढ़ में धर्मेंद्र यादव की हार के बाद सवाल उठे थे कि अखिलेश यादव चुनाव प्रचार के लिए आते तो शायद परिणाम कुछ और होता. माना जा रहा है कि उपचुनाव वाली गलती सपा इस बार नहीं दोहराना चाहती है, जिसके लिए अखिलेश यादव से लेकर शिवपाल यादव सहित सैफई परिवार ने आजमगढ़ में कैंप ही नहीं कर रखा बल्कि धर्मेंद्र यादव को जिताने के लिए कड़ी मशक्कत भी कर रहा है.

धर्मेंद्र यादव ने नामांकन के बाद से आजमगढ़ में डेरा जमा रखा है, तो अब उनके लिए सपा नेता ही नहीं बल्कि परिवार के सदस्य भी पहुंच रहे हैं. पूर्वांचल में धर्मेंद्र यादव इकलौते सपा से चुनाव लड़ने वाले यादव समुदाय से उम्मीदवार हैं. आजमगढ़ यादव सियासत का केंद्र रहा है. सपा से लेकर बसपा और बीजेपी तक से जीतने वाले यादव नेता ही रहे हैं. आजमगढ़ के आसपास के इलाके वाली सीटों पर भी यादव वोटर काफी अहम हैं. माना जा रहा है कि अखिलेश आजमगढ़ के बहाने पूर्वांचल के यादव समुदाय के नेताओं को भी सियासी संदेश देने की कवायद कर रहे हैं.

आजमगढ़ सीट का सियासी समीकरण

आजमगढ़ लोकसभा सीट पर करीब 19 लाख मतदाता हैं, जिसमें सबसे ज्यादा करीब साढ़े चार लाख यादव वोट हैं. मुस्लिम और दलित तीन-तीन लाख हैं, जबकि शेष अन्य जाति के हैं. ओबीसी में यादव समाज सपा का कोर वोटर है, तो वहीं दलितों में बसपा का मूल वोट बैंक माने जाने वाले जाटवों की संख्या अधिक है. बसपा ने मशहूद अहमद को प्रत्याशी बनाकर मुस्लिम व दलित को एकजुट रखने का दांव पहले ही चल दिया है.

वहीं, सपा के सामने आजमगढ़ सीट बीजेपी से वापस छीनने की बड़ी चुनौती है. मुलायम सिंह की सियासी विरासत संभालने वाले अखिलेश यादव जिस तरह 2019 में आजमगढ़ सीट से चुनाव मैदान में उतरे थे और जीतने में सफल रहे थे, लेकिन धर्मेंद्र यादव उसे बरकरार नहीं रख सके. अखिलेश फिर से धर्मेंद्र यादव को चुनाव मैदान में उतारकर यादव-मुस्लिम वोटों के समीकरण के सहारे अपने सियासी वर्चस्व को बनाए रखना चाहते हैं, क्योंकि बसपा ने जिस तरह से मुस्लिम कैंडिडेट को उतार रखा है, तो बीजेपी ने यादव समुदाय से आने वाले दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ पर दांव खेलकर मुकाबले को रोचक बना दिया है.

आजमगढ़ सीट पर सपा के सामने यादव कैंडिडेट ही उतारने का विकल्प था, इस वजह से दोबारा से धर्मेंद्र यादव के नाम पर सपा ने मुहर लगाई. अखिलेश यादव उपचुनाव के बाद से आजमगढ़ के दुर्ग को दुरुस्त करने के मिशन में जुट गए थे. 2022 उपचुनाव में सपा का खेल बिगाड़ने वाले शाह आलम गुड्डू जमाली को बसपा से अपने साथ मिला ही नहीं लिया बल्कि एमएलसी भी बनाया. इसके अलावा यादव वोटों को साधे रखने के लिए बलराम यादव को भी विधान परिषद भेजा. 2024 में धर्मेंद्र यादव को उतारा ही नहीं बल्कि जिताने के लिए खुद डेरा जमा रखा है, ताकि किसी तरह का कोई रिस्क न रह जाए?

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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