ऑपरेशन ब्लू स्टार से लेकर ‘370’ तक… सरकारों के भरोसेमंद अजीत डोभाल की कहानी

 

नई दिल्ली: पीएम मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने अजीत डोभाल (Ajit Doval) को एक बार फिर देश का राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया है. 30 मई 2014 से वो इस पद पर हैं. बतौर एनएसए ये उनका तीसरा कार्यकाल है, जो कि इस बात की तस्दीक करता है कि डोभाल पीएम मोदी के कितने भरोसेमंद हैं. दुनिया में वो भारत के ‘जेम्स बॉन्ड’ के नाम से जाने हैं.

साल 1968 में अजीत डोभाल केरल कैडर से आईपीएस चुने गए थे. जम्मू-कश्मीर के साथ ही वो मिजोरम और पंजाब में आंतकवाद विरोधी ऑपरेशन में शामिल रहे हैं. उनका जन्म 1945 में पौड़ी गढ़वाल के घिरी बनेलस्यूं गांव में हुआ था. उनके जीएन डोभाल भारतीय सेना में अधिकारी थे. अजीत डोभाल करियर काफी दिलचस्प रहा है.

नरेंद्र मोदी जब पहली 2014 में देश के प्रधानमंत्री बने तो आतंकवाद के खिलाफ डोभाल के तजुर्बे, कूटनीतिक फैसले लेने की समझ और राष्ट्रवादी विचारधारा को देखते हुए एनएसए ( राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार) पद की अहम जिम्मेदारी दी. मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में उन्होंने कई महत्वपूर्ण ऑपरेशन्स को अंजाम दिया. कहा जाता है कि अमेरिका और रूस के साथ बैलेंस बनाकर चलने की पॉलिसी में अजीत डोभाल का बड़ा रोल था.

सबसे बड़ी चुनौती थी जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा व्यवस्था

मोदी सरकार के दूसरे टर्म में यानी कि 2019 में जब सरकार बनी तो उसके कुछ महीने बाद 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया. मोदी सरकार के इस ऐतिहासिक कदम को अमल में लाने की योजना एक दिन की नहीं थी. इस पर काफी लंबे समय से काम चल रहा था. आतंकवाद का दंश झेल रहे जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने से पहले सरकार के सामने कई चुनौतियां थीं. इसमें सबसे बड़ी चुनौती थी जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा व्यवस्था. साथ ही वहां की अलगाववादी विचारधारा पर काबू पाना.

सरकार के इस कदम से पहले जम्मू-कश्मीर की पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती घाटी के अन्य नेता सीधे तौर पर सरकार को चेतावनी दे चुके थे कि अनुच्छेद 370 को छुआ तो परिणाम गंभीर होंगे. एक तरफ सुरक्षा का मुद्दा था तो दूसरी तरफ इस तरह के बयानों से होने वाले असर को रोकने की भी चुनौती थी.

अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर पहुंचे थे डोभाल

5 अग्सत 2019 को अनुच्छेद 370 के खात्मे का ऐलान हुआ. जम्मू-कश्मीर की सड़कों पर परसे सन्नाटे के बीच 7 अगस्त को अजीत डोभाल खुद जम्मू-कश्मीर पहुंच गए. उन्होंने सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लिया. वो कश्मीर की गलियों में घूमे. लोगों के साथ सड़क किनारे खाना भी खाया. अमूमन पर्दे के पीछे रहकर काम करने वाले डोभाल इस बार सामने आए और सरकार द्वारा दी गई जिम्मेदारी को बखूबी निभाया. ये पहला मौका नहीं है, जब वो दी गई जिम्मेदारियों पर खरे उतरे थे. इससे पहले उन्होंने ऑपरेशन ब्लू स्टार में अहम रोल प्ले किया था. डोभाल की रणनीति की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी मुरीद थीं.

ऑपरेशन ब्लू स्टार में डोभाल की भूमिका

ये बात साल 1984 की. 3 से 6 जून तक ऑपरेशन ब्लू स्टार चला था. खालिस्तान समर्थक जनरैल सिंह भिंडरावाले और उसके समर्थकों ने अमृतसर स्थित हरिमंदिर साहिब परिसर पर कब्जा कर लिया था. इसे मुक्त कराने के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया गया. इसमें पाकिस्तानी गुप्तचर की भूमिका निभाते हुए डोभाल ने देश की सेना के लिए जानकारी जुटाई थी.

कूका पारे को डोभाल मुख्यधारा में लाए

आतंकवाद के खात्मे में अहम रोल अदा करने वाले डोभाल को कूका पारे उर्फ मोहम्मद यूसुफ पारे मुख्य धारा में लाने का भी श्रेय जाता है. कूका पारे भारत विरोधी कश्मीरी उग्रवादी था. डोभाल ने ऐसे खेल खेला था कि पाकिस्तान में आतंक की पाठशाला में पढ़ने वाला कूका पारे 250 आतंकियों को साथ लेकर पाकिस्तान के ही खिलाफ हो गया था. कूका पारे मुख्यधारा में लौटा और उसने जम्मू-कश्मीर आवामी लीग पार्टी बनाई. इतना ही नहीं वो एक बार विधायक भी रहा.

1991 में रोमानियाई राजनयिक को बचाया

खालिस्तान लिबरेशन फ्रंट ने साल 1991 में रोमानियाई राजनयिक लिविउ राडू को किडनैप कर लिया था. राडू को खालिस्तान लिबरेशन फ्रंट के चंगुल से सुरक्षित निकालने का प्लान डोभाल ने बनाया था. पीओके में घुसकर आंतकियों और उनके कैंप तबाह करने के ऑपरेशन के पीछे भी उनकी अहम भूमिका मानी जाती है. सर्जिकल स्ट्राइक में भी उनका अहम रोल रहा है.

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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