उम्मीदवार कोई भी, बाजी बीजेपी के हाथ ही…कैसे सीएम योगी का गढ़ बना हुआ है गोरखपुर?

लखनऊ: लोकसभा चुनाव-2024 के लिए आखिरी चरण की वोटिंग 1 जून को होगी. देश की हाई प्रोफाइल सीट गोरखपुर में भी इसी दिन वोट डाले जाएंगे. यहां पर मुकाबला भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के रवि किशन और इंडिया गठबंघन की उम्मीदवार काजल निषाद के बीच है. रवि किशन यहां के मौजूदा सांसद हैं. भोजपुरी फिल्मों के स्टार रवि किशन लगातार दूसरी बार इस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में रवि किशन ने 3 लाख से ज्यादा वोटों से जीत हासिल की थी. रवि किशन के लिए लड़ाई इस बार भी आसान मानी जा रही है, क्योंकि गोरखपुर में सिक्का बीजेपी का ही चलता आया है. पिछले 26 वर्षों से योगी आदित्यनाथ के दम पर यहां पर भगवा पार्टी का पचरम लहरा रहा है.

 

वो योगी आदित्यनाथ ही हैं, जिनकी वजह से गोरखपुर बीजेपी की सेफ सीट बनी हुई है. यहां पर जिसके सिर पर योगी आदित्यनाथ का हाथ रहा है, उसकी किस्मत चमकती रही है. बात चाहे पूर्व विधायक डॉ राधा मोहन दास अग्रवाल (आरएममडी) की हो या मौजूदा सांसद रवि किशन की. योगी आदित्यनाथ के कारण ही आरएमडी ने दाऊदपुर में क्लीनिक चलाने से लेकर विधानसभा तक का सफर तय किया और अब तो वह राज्यसभा के सांसद हैं. योगी आदित्यनाथ की वजह से ही रवि किशन संसद पहुंचे. दरअसल, गोरखपुर के लोग इस आधार पर वोट करते हैं कि बीजेपी के उम्मीदवार को योगी आदित्यनाथ का सपोर्ट है या नहीं, या यूं कहें कि वो वो मठ के कितना करीब है.

 

2002 का चुनाव रहा है गवाह

2002 के विधानसभा चुनाव पर ही एक नजर दौड़ा लीजिए. उस चुनाव में बीजेपी ने शिव प्रताप शुक्ला को टिकट दिया था. शुक्ला मौजूदा विधायक थे. लेकिन हैरानी तब हुई जब आरएमडी भी हिंदू महासभा के टिकट पर मैदान में उतर गए. शिव प्रताप शुक्ला और योगी आदित्यनाथ के संबंध कैसे हैं, ये गोरखपुर की जनता खूब जानती है. आरएमडी मठ के करीब थे. उनको योगी आदित्यनाथ का सपोर्ट था. राधा मोहन योगी आदित्यनाथ के कहने पर ही राजनीति के मैदान में उतरे थे. 1998 में योगी आदित्यनाथ जब गोरखपुर से पहली बार चुनाव लड़े थे तब राधा मोहन ने उनके लिए प्रचार किया थे.

 

योगी से उनकी करीबी को देखते हुए लोगों ने 2002 के चुनाव में उनके पक्ष में वोट डाला और उन्हें विधायक बना दिया. बीजेपी को भी योगी आदित्यनाथ की ताकत का एहसास हो गया था और 2007 के चुनाव में आरएमडी को उम्मीदवार बना दिया. आरएमडी यहां से कभी चुनाव नहीं हारे. जीत का अंतर बढ़ता रहा. 2017 में योगी आदित्यनाथ केंद्र की राजनीति से उत्तर प्रदेश की राजनीति में शिफ्ट कर गए. प्रदेश की कमान उनके हाथों में आ गई. वह विधान परिषद के सदस्य बन गए. 2022 में योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से विधानसभा का चुनाव लड़े. जीत उनकी तय मानी जा रही थी और हुआ भी यही. राधा मोहन ने अपने ‘गुरु’ के लिए सीट छोड़ी तो उन्हें इनाम भी मिला. बीजेपी ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया.

 

योगी आदित्यनाथ जब राज्य की राजनीति में शिफ्ट हुए तो सवाल था कि यहां से बीजेपी किसे सांसदी का चुनाव लड़ाएगी. सभी को चौंकाते हुए भोजपुरी के स्टार रवि किशन को टिकट दिया गया. पूर्वांचल में रवि किशन की अच्छी खासी लोकप्रियता है. लेकिन गोरखपुर में सिर्फ लोकप्रियता से ही सबकुछ नहीं होता. बीजेपी प्रत्याशी मठ के कितना करीब है, यह सबसे ज्यादा मायने रखता है. रवि किशन मठ में हाजिरी लगाते रहते हैं. लोगों के बीच में भी उन्हें लेकर पॉजिटिव मैसेज रहा है और यही वजह है कि वह लगातार दूसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं.

 

‘बीजेपी को नहीं तो किसको वोट दें’

हर बार की तरह इस बार भी क्षेत्र में योगी आदित्यनाथ के खिलाफ कोई नाराजगी नहीं दिख रही है. लोग बिजली कटौती से जरूर परेशान हैं, लेकिन उनका कहना है कि सपा-बसपा के कार्यकाल के मुकाबले व्यवस्था बेहतर है. गोरखपुर के दाऊदपुर में रहने वाले एक शख्स ने कहा कि लाइट बहुत जा रही है. रात में कई घंटे नहीं रह रही है. हालांकि उन्होंने ये भी बताया कि क्यों लाइट जा रही है. उन्होंने कहा कि सड़कों को चौड़ा करने का काम किया जा रहा है. गर्मी में डिमांड भी बढ़ी है, इस वजह से बिजली जा रही है. वो ये भी कहते हैं कि हम वोट दें तो किसको दें. सामने भी तो बेहतर विकल्प होना चाहिए.

 

मतलब साफ है कि क्षेत्र में योगी आदित्यनाथ का कोई विकल्प नहीं है. योगी का यहां सिक्का चलने की वजह ये भी है कि वह हिंदुत्व का चेहरा हैं. इलाके के हिंदू लोग उनके रहते सुरक्षित महसूस करते हैं. गोरखपुर कई दंगों का गवाह रहा है. 2007 के दंगे में योगी आदित्यनाथ जेल तक चले गए थे. उस दंगे को याद करते हुए वह संसद में भावुक भी हो गए थे. आदित्यनाथ के साथ गोरखपुर के लोगों का इमोशन जुड़ा हुआ है. आदित्यनाथ पर ब्राह्मण विरोधी होने का टैग भी लगा हुआ है, लेकिन जब वोट देने की बात आती है ये तो हट जाता है.

 

गोरखपुर में ऐसे कई ब्राह्मण हैं जो योगी आदित्यनाथ के समर्थक हैं. वह योगी आदित्यनाथ के लिए प्रचार करते हैं. घर-घर जाकर योगी के लिए वोट मांगते हैं. क्षेत्र के ब्राह्मण जब वोट देने जाते हैं तो वो ये नहीं देखते हैं योगी को हमारा विरोधी माना जाता है. वो बड़ी पिक्चर देखकर वोट करते हैं. वो ये देखते हैं हम योगी आदित्यनाथ के साथ सुरक्षित रहेंगे.

 

मठ का दिखता है रहा है दम

ऐसा नहीं है कि योगी आदित्यनाथ के आने के बाद ही गोरखपुर में गोरखनाथ मंदिर का दम दिखा है. 1998 से पहले भी महंत दिग्विजय नाथ और महंत अवैद्यनाथ यहां से लोकसभा पहुंच चुके हैं. 1967 के चुनाव में महंत दिग्विजय ने जीत हासिल की थी. इसके बाद 1970 में फिर मठ का दम दिखने को मिला और महंत अवैद्यनाथ सांसद बने. इसके बाद यहां पर कांग्रेस की एंट्री हुई. 1971 में नरसिंह पांडे ने जीत हासिल की थी. लेकिन 1991 के चुनाव में यहां पर फिर महंत अवैद्यनाथ ने वापसी की. 1998 के चुनाव में यहां पर योगी आदित्यनाथ की एंट्री होती है. अपने पहले ही टेस्ट में वह पास हुए. योगी 2017 तक यहां के सांसद रहे.

 

2017 में योगी लखनऊ शिफ्ट हुए तो इसका झटका बीजेपी को लगा. 2018 के उपचुनाव में उसे हार मिली. सपा के प्रवीण निषाद ने यहां पर बाजी मारी. प्रवीण निषाद अब बीजेपी के साथ हैं और वह इस बार के लोकसभा चुनाव में संतकबीरनगर से प्रत्याशी हैं. हालांकि 2018 वाले चुनाव के नतीजों के बाद लोकल स्तर पर कई तरह की बातें भी चली.

 

जाति समीकरण को भी जानिए…

किसी भी उम्मीदवार की हार और जीत तय करने में अन्य सीटों की तरह गोरखपुर में भी जाति समीकरण का रोल अहम होता है. यहां पर अपर कास्ट वोटर्स की अच्छी खासी संख्या है. ये 6 लाख हैं. वहीं, 9 लाख ओबीसी मतदाता है. इसमें से 3.5 लाख निषाद वोटर्स है और 2.4 लाख यादव मतदाता हैं. क्षेत्र में 2.5 लाख दलित वोटर्स और 2 लाख मुस्लिम मतदाता हैं. अपर कास्ट वोटर्स बीजेपी के पाले वाले ही माने जाते हैं.

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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