कश्मीर: जम्मू-कश्मीर विधानसभा में लगातार दूसरे दिन अनुच्छेद-370 को लेकर हंगामा हुआ। बुधवार को बीजेपी के विरोध के बीच जम्मू-कश्मीर के विधानसभा में 370 दोबारा लागू करने का प्रस्ताव पास हो गया। यह प्रस्ताव केंद्रशासित प्रदेश के डिप्टी सीएम सुरिंदर कुमार चौधरी ने रखा था। नेशनल कॉन्फ्रेंस ने यह बड़ी चालाकी से इस बिल के प्रस्तावक चुनने में संकेतों का इस्तेमाल किया। डिप्टी सीएम सुरिंदर चौधरी हिंदू हैं और जम्मू के नौशेरा से चुने गए हैं। दूसरे दिन विधायक खुर्शीद अहमद शेख अनुच्छेद 370 पर बैनर लेकर विधानसभा पहुंचे। इसके बाद विधानसभा में हाई वोल्टेज ड्रामा हुआ। अब हंगामे के कारण अब कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। क्या 370 को दोबारा लागू किया जा सकता है? अगर नहीं तो केंद्रशासित प्रदेश की नई सरकार ने विधानसभा में प्रस्ताव क्यों पारित किया?
जानिए क्यों नहीं लौटेगा जम्मू-कश्मीर अनुच्छेद 370
बीजेपी का दावा है कि जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 अब इतिहास बन चुका है और इसे दोबारा लागू नहीं किया जा सकता है। यह दावा सही है। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के केंद्र सरकार के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों बेंच की मुहर लग चुकी है। 11 दिसंबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 और 35A को हटाने को वैध बताया था। कोर्ट ने अपने फैसले में कई तथ्यों का उल्लेख किया था, जिससे यह पता चलता है कि विधानसभा में प्रस्ताव पास करने के बाद भी केंद्रशासित प्रदेश को दोबारा लागू करने के लिए केंद्र सरकार और राष्ट्रपति की सहमति की जरूरत पड़ेगी। ऐसा अब राजनीतिक कारणों से संभव नहीं है, भले ही केंद्र में सरकार किसी की हो। जो पार्टी अब अपनी राजनीतिक शक्ति का उपयोग कर संसद और राष्ट्रपति के जरिये इसे लागू करने की कोशिश करेगी, उसे 80 फीसदी बहुसंख्यक हिंदू समुदाय का विरोध झेलना पड़ेगा।
दो संविधान और दो निशान के खात्मे पर लगा है सुप्रीम मुहर
जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 अक्टूबर 1949 में अस्तित्व में आया था, जिसके तहत उसे आंतरिक प्रशासन के लिए स्वायत्तता दी गई थी। जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा में पारित प्रस्ताव के तहत उसे वित्त, रक्षा और संचार के अलावा कानून बनाने का अधिकार था। 5 अगस्त 2019 को केंद्र ने अनुच्छेद 370 को खत्म करने के लिए राष्ट्रपति के अधिकार का सहारा लिया था। कोर्ट ने भी अपने फैसले में माना कि राष्ट्रपति के पास अनुच्छेद 370 में संशोधन करने की एकतरफ़ा शक्ति थी। चूंकि राष्ट्रपति ने भारत के पूरा संविधान जम्मू-कश्मीर में लागू किया है, इसलिए जम्मू-कश्मीर का संविधान निष्क्रिय हो गया है। सुप्रीम मुहर लगने के बाद जम्मू-कश्मीर की संवैधानिक का अस्तित्व ही समाप्त हो चुका है। कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर की संप्रभुता के दावे को भी खारिज कर दिया था। इसके साथ ही दो निशान और दो संविधान भी खत्म हो चुके हैं।
कांग्रेस,पीडीपी-नेशनल कॉन्फ्रेंस की मजबूरी है विरोध
2019 में बीजेपी सरकार के फैसले के बाद जम्मू-कश्मीर के क्षेत्रीय राजनीतिक दलों नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी के साथ कांग्रेस और गैर बीजेपी दलों ने विरोध जताया था। कांग्रेस ने कोर्ट के फैसले पर भी असहमति जताई थी। कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने कहा था कि जिस तरीके से अनुच्छेद 370 को निरस्त किया गया उससे हम असहमत हैं। इसके बाद कांग्रेस के कई नेताओं ने 370 हटाने का विरोध किया, मगर कभी यह वादा नहीं किया कि वह इसे दोबारा लागू करेगी। कांग्रेस के लिए 370 हटाने का विरोध बीजेपी के खिलाफ प्रतीकात्मक वैचारिक लड़ाई के अलावा कुछ नहीं है, इसलिए उसने जम्मू-कश्मीर के घोषणा पत्र में सिर्फ पूर्ण राज्य का दर्जा देने का वादा किया। कांग्रेस अपने अल्पसंख्यक वोटरों के लिए इसका विरोध करती रहेगी। नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के लिए कश्मीर में अपने जनाधार बचाने के लिए राजनीतिक दांव ही है।