नई दिल्ली : बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों के बीच विदेश मंत्रालय एक बार फिर से एक्टिव हो गया। इसके साथ ही ऐक्शन में आ गए हैं विदेश मंत्री एस जयशंकर। जयशंकर की छवि मोदी सरकार के ट्रबलशूटर के रूप में बन चुकी है। बात चाहे मालदीव के साथ रिश्तों में तल्खी की हो या चीन के साथ सीमा विवाद की। जयशंकर ने हर मुद्दे पर खुद को साबित किया है। जयशंकर ने यह दिखाया है कि किस तरह से कूटनीतिक के मोर्चे पर देश को संकट से बाहर निकालना है। यही वजह है कि पीएम मोदी एस जयशंकर पर इतना भरोसा करते हैं।
मालदीव को रास्ते पर लाए
भारत और मालदीव के बीच संबंधों में पिछले साल ही तल्खी देखने को मिली थी। इंडिया आउट कैंपन के जरिये सत्ता में आने वाले मुइज्जू ने हमारे खिलाफ आक्रामक रुख अपनाया हुआ था। उन्होंने भारतीय सैनिकों को मालदीव छोड़ने का फरमान बी सुना दिया। इसके बाद ये जयशंकर के नेतृत्व वाले विदेश मंत्रालय की कूटनीति का ही परिणाम था कि कुछ महीनों तक संबंधों में कड़वाहट कम होती नजर आई।
इस साल अक्टूबर में मुइज्जू भारत के दौरे पर आए। विदेश नीति की जरूरतों के अनुसार मुइज्जू ने हृदय परिवर्तन करना ही ठीकक समझा। इसके पीछे मालदीव की आर्थिक हालत और भारत की मदद भी अहम कारक रही।
चीन के साथ सीमा विवाद सुलझाया
ये जयशंकर की टीम ही थी जिसने चीन के साथ लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद को सुलझाने में महत्वपूर्ण सफलता हासिल की। जून 2020 में गलवान घाटी में हुई भीषण झड़प के बाद भारत और चीन के संबंध निचले स्तर पर पहुंच गए थे। यह झड़प पिछले कुछ दशकों में दोनों पक्षों के बीच हुई सबसे भीषण सैन्य झड़प थी।
नियंत्रण रेखा पर तनाव व अन्य संबंधित घटनाक्रमों का सीधा असर भारत-चीन संबंधों पर पड़ा था। भारत ने यह स्पष्ट किया है कि आपसी संबंधों का विकास आपसी संवेदनशीलता, आपसी सम्मान और आपसी हित के सिद्धांतों पर निर्भर करता है।
एस जयशंकर, संसद में चीन के साथ सीमा विवाद पर
आखिरकार चीन के साथ चले आ रहे सीमा विवाद पर समझौता हुआ। दोनों पक्षों ने 21 अक्टूबर को टकराव वाले दो बिंदुओं पर पीछे हटने और गश्त करने पर सहमति जताई थी। इस समझौते से पहले इसी साल 4 जुलाई को अस्ताना और फिर 25 जुलाई को वियनतियाने में चीनी विदेश मंत्री के साथ व्यापक संबंधों पर चर्चा हुई। इसके अलावा भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और चाइनीज समकक्ष के बीच 12 सितंबर को सेंट पीटर्सबर्ग में एक मुलाकात हुई थी।
अब बांग्लादेश की बारी
बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमले देश-दुनिया में चर्चा का विषय बना हुआ है। इसके साथ ही भारत ने इस मुद्दे पर अपनी आपत्ति भी जाहिर की है। अब विदेश मंत्रालय ने इस दिशा में अहम पहल की है। विदेश सचिव विक्रम मिसरी 9 दिसंबर को बांग्लादेश के जा रहे हैं। विक्रम दोनों देशों के बीच फॉरेन ऑफिस कंसल्टेशन से जुड़ी बैठक में हिस्सा लेंगे। बांग्लादेश में संत चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी के बाद से घटनाक्रम तेजी से बदला है।
विक्रम मिसरी विदेश कार्यालय परामर्श ढांचे के तहत एक बैठक में शामिल होने के लिए 9 दिसंबर को बांग्लादेश की यात्रा पर जाएंगे। ढाका में विदेश सचिव बांग्लादेश के अपने समकक्ष के साथ वार्ता करेंगे, इसके अलावा कई अन्य बैठकें भी करेंगे।
रणधीर जायसवाल, प्रवक्ता, विदेश विभाग
बांग्लादेश में सत्ता पलट के बाद बदले हालात
दरअसल बांग्लादेश में शेख हसीना की सत्ता जाने और मुहम्मद युनूस की अंतरिम सरकार के आने के बाद से भारत और बांग्लादेश के रिश्तों में असहजता देखने को मिल रही है। एक के बाद एक कई ऐसी घटनाएं हुईं जिसने दोनों देशों के बीच कूटनीतिक तनातनी देखने को मिली। पिछले कुछ महीनों में वहां हिंदू समेत दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े लोगों पर हिंसक हमले हो रहे हैं।
इसे लेकर भारत बार-बार अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने पर जोर दे रहा है। हाल में संत चिन्मय की गिरफ्तारी के बाद द्विपक्षीय संबंधों और असज हुए हैं। ऐसे में अब विदेश मंत्रालय इस संकट को सुलझाने में एक्टिव हो गया है।