बिना चेहरा BJP कैसे जीतेगी झारखंड का चुनाव, शिवराज और हिमंत ने बनाई बड़ी रणनीति

झारखंड की रणनीति

झारखंड में BJP ने चुनावी अभियान को और भी तेज कर दिया है. पार्टी ने हरियाणा से अलग मध्यप्रदेश, छतीसगढ़ और राजस्थान की रणनीति को अपनाने का फैसला किया है. पार्टी ने तय किया है कि इस बार का विधानसभा चुनाव किसी एक नेता के नेतृत्व में नहीं बल्कि सामूहिक नेतृत्व में लड़ा जाएगा. राज्य में चुनाव अभियान की कमान केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान और असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा सभाल रहे हैं. राज्य में चुनावी रणनीति को अमलीजामा पहनाने का काम इन्हीं दोनों नेताओं के कंधे पर है. ये दोनों नेता राज्य संगठन के पल-पल की जानकारी पार्टी आलाकमान को दे रहे हैं.

रघुवर दास से नहीं मिला था फायदा

साल 2019 के चुनाव में BJP ने गैर आदिवासी चेहरा रघुवर दास को पार्टी का चेहरा घोषित किया था. तब पार्टी चुनाव हार गईं. आदिवासी सीटों खासकर संथाल परगना और कोल्हान में BJP को सिर्फ 6 सीटें ही मिल पाईं. इसके उलट झामुमो को 28 सीटें मिली थीं. शिबू सोरेन के मुकाबले BJP के पास न तो कोई मजबूत चेहरा कल था और न आज है. यही वजह है कि BJP प्रदेश में हेमंत सोरेन की सत्ता से बाहर करने की चुनावी रणनीति बना रही है.

राज्य में बीजेपी के पास चेहरा नहीं

राज्य में बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा जैसे नेताओं का कोई ख़ास जादुई असर रहा नहीं दिखा. इसी वजह से BJP ने कोल्हान से चंपई सोरेन को BJP में शमिल कराया. ऐसे में BJP में ऐसे नेता का अभाव है जिसका आदिवासी वोटर्स में खास अपील हो. दूसरी तरफ बीजेपी इस बात से भी वाकिफ है कि उसके मतदाताओं में गैर आदिवासियों की संख्या अधिक है. बीजेपी गैर आदिवासी सीटों पर ज्यादा बेहतर परफॉर्म करती रही है लिहाजा उसके अपने कोर वोटर्स में इस बात की उम्मीद बनी रहे कि मुख्यमंत्री उनके बीच से कोई बनाया जा सकता है. इसलिए बीजेपी सामूहिक नेतृत्व की बात कर रही है.

झारखंड में बदल चुका है माहौल

साल 2019 में हुए झारखंड विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश की राजनीति में बहुत बदलाव आ चुका है. पिछले 5 साल में झारखंड ने दो लोगों को 3 बार मुख्यमंत्री बनते देखा है. साल 2000 में झारखंड के गठन के बाद यहां बीजेपी या झामुमो के नेतृत्व में ज्यादातर सरकारें बनी हैं. 24 साल में 13 अलग-अलग सरकारें बन चुकी हैं. इन सरकारों का नेतृत्व सात अलग-अलग व्यक्तियों ने किया है. यानी बीजेपी का एक भी सीएम अपना कार्यंकाल पूरा नहीं कर पाया .

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