योगी और मोदी की किस रणनीति ने महाराष्ट्र में बीजेपी को दिलाई प्रचंड जीत, 5 बड़े कारण जानिए

योगी और मोदी की किस रणनीति ने महाराष्ट्र में बीजेपी को दिलाई प्रचंड जीत, 5 बड़े कारण जानिए

नई दिल्ली: महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों और यूपी के उपचुनावों में योगी आदित्यनाथ का बंटेंगे तो कटेंगे के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक हैं तो सेफ है का नारा हिट होता दिख रहा है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजों के रुझानों में बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए गठबंधन की आंधी दिखाई दे रही है। महाराष्ट्र की 288 सीटों के रुझानों में बीजेपी के महायुति गठबंधन को 200 से ज्यादा सीटें मिलती नजर आ रही हैं। इसी तरह, यूपी की 9 विधानसभा सीटों के लिए हुए उपचुनावों में भी बीजेपी को कम से कम 7 सीटें मिलती दिख रही हैं। माना जा रहा है कि इस जीत की बड़ी वजह ध्रुवीकरण है। आइए-समझते हैं।

लोकसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी की जीत के बाद सतर्क हुई बीजेपी

लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र के हिस्से में 48 सीटें आती हैं। इस चुनाव में महाविकास अघाड़ी को 30 और महायुति गठबंधन को 17 सीटें मिलीं। यानी दस वक्त जनता ने अपना झुकाव महाविकास अघाड़ी की ओर दिखाया। इसी के बाद से बीजेपी और संघ ने अपनी रणनीति बदली। दोनों ने बेहद सतर्कता बरतते हुए योगी और मोदी पर दांव लगाया।

2019 के विधानसभा चुनाव में यह थी बीजेपी की स्थिति

2019 में हुए विधानसभा चुनाव के आंकड़ों पर नज़र डालें तो बीजेपी को 105, शिव सेना (अविभाजित शिव सेना) को 56, एनसीपी (अविभाजित एनसीपी) को 54 और कांग्रेस को 44 सीटें मिलीं थीं। जिसके बाद शिव सेना, एनसीपी और कांग्रेस ने साथ मिलकर सरकार बना ली थी। हालांकि, यह गठबंधन ज्यादा दिनों तक सरकार नहीं चला सका।

महायुति में शिवसेना और पवार गुट भी आया

साल 2022 के जून में शिव सेना के आपसी विवाद के कारण एकनाथ शिंदे शिव सेना के एक गुट को लेकर अलग हो गए। वहीं अजित पवार भी एनसीपी के एक गुट को अपने साथ ले आए। इसके बाद वो बीजेपी और एकनाथ शिंदे की शिव सेना की सरकार में शामिल हो गए और उपमुख्यमंत्री बन गए। इसने एनसीपी के वोटरों को महायुति की ओर मोड़ने में अहम भूमिका निभाई। वहीं, शिंदे ने भी शिव सेना के वोटरों को महायुति से जोड़ने में सफलता पाई।

नहीं चला मराठा फैक्टर और बेरोजगारी का मुद्दा

महाराष्ट्र में मराठा फैक्टर और बेरोजगारी का मुद्दा महाविकास अघाड़ी के पक्ष में नहीं रहा है। दरअसल, वोटों के ध्रुवीकरण ने इन मुद्दों को काफभ् पीछे छोड़ दिया। वहीं, महायुति के लिए हिंदुत्व जैसा मुद्दा लाना जरूरी है जो देश भर में मजबूत रहा है। महायुति को जैसी उम्मीद थी, योगी और मोदी के नारे काम कर गए।

महाराष्ट्र में योगी का नारा काम कर गया, चला दांव

हरियाणा में योगी आदित्यनाथ ने यह नारा उछाला था, जिसका नतीजा भाजपा की जीत के रूप में रहा। हालांकि, जब बीजेपी ने योगी के ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ वाले बैनर महाराष्ट्र में लगाए तो इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई क्योंकि महाराष्ट्र में इस तरीके का हिंदुत्व नहीं चलता जो उत्तर प्रदेश या हरियाणा में चला है। मगर, नतीजे सामने आने के बाद यह साफ हो गया है कि महाराष्ट्र की राजनीति में भी ध्रुवीकरण का दौर शुरू हो गया।

कांग्रेस का संविधान बचाओं का दांव नहीं चला

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने ‘संविधान बचाओ’ का नारा दिया था। खासतौर पर यह नारा यूपी के लोकसभा क्षेत्रों में काम कर गया था। ये एक बड़ा नैरेटिव था जो महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में नहीं चल पाया। वहां केंद्र सरकार के खिलाफ जो माहौल था वो भी नहीं है। मराठा आरक्षण का दांव भी कांग्रेस का नहीं चला।

आरएसएस ने भी सतर्कता के साथ संभाला मोर्चा

माना जा रहा है कि महाराष्ट्र चुनाव में आरएसएस ने मोर्चा संभाल रखा था। हरियाणा की तरह यहां भी आरएसएस के लोग एक्टिव थे। दरअसल, लोकसभा चुनाव में यूपी में बीजेपी के खराब प्रदर्शन के पीछे संघ के चुनावों से दूरी को माना जा रहा था। मगर, जब बीजेपी यूपी में कई जगहों से हार गई तो फिर से चुनावों में संघ के लोगों को लगाया गया।

लाडली बहना योजना ने भी दिलाई बढ़त

मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार की ‘लाडली बहन योजना’ के बाद महाराष्ट्र की महायुति सरकार ने भी इस साल जून महीने में ‘मुख्यमंत्री-मेरी लाडली बहन योजना’ की शुरुआत की। इस योजना के तहत पात्र महिलाओं को हर महीने 1500 रुपये दिए जा रहे हैं। माना जा रहा है कि बीजेपी की प्रचंड जीत में इस फैक्टर का भी बड़ा योगदान था।

कांग्रेस का बेरोजगारी का मुद्दा भी बेकार साबित हुआ

महाराष्ट्र चुनाव में महाविकास अघाड़ी गठबंधन में शामिल कांग्रेस, उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को लेकर राज्य सरकार को घेर रही है। ऐसे में विपक्षी गठबंधन महाविकास अघाड़ी को उम्मीद थी कि उन्हें चुनाव में लोगों का साथ मिलेगा। मगर, नतीजे इसके उलट रहे। महाराष्ट्र में न तो सोयाबीन की एमएसपी की गारंटी का मुद्दा भी नहीं चला।

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